घर के बड़े-बूढ़ों द्वारा बच्चों को सुनाई जाने वाली किसी ऐसी कथा की जानकारी प्राप्त कीजिए जिसके आखिरी हिस्से में कठिन परिस्थितियों से जीतने का संदेश हो।


घर में बड़े-बूढ़ों द्वारा बच्चों को सुनाई जाने वाले ऐसे कई किस्से और कहानियां। इन्हीं में से एक है मनबुद्धी से बुद्धीमान बने बालक वरदराज की कहानी।
वरदराज नाम का एक मनबुद्धी बालक था। वरदराज पढ़ने में बहुत कमजोर था। इस वजह से सब उसका बहुत मजाक उड़ाते थे, कोई उसे मंदबुद्धि कहता तो कोई मूर्ख कहता था। उसके सभी सहपाठी जो उसके साथ पढ़ते थे वे आगे की कक्षा में पहुंच गए, लेकिन बालक वरदराज एक ही कक्षा में कई साल तक अटका रहा। उसे पढ़ाई लिखाई समझ में नहीं आती थी।
पढ़ाई में कमजोर होने की वजह से शिक्षक उसे पसंद नहीं करते थे। अंत में उसे विद्यालय से यह कहकर निकाल दिया गया की वह पढ़ने लिखने में असमर्थ हैं। इसके बाद निराश माता-पिता ने वरदाराज को पढ़ने के लिए गुरुकुल भेज देया। वहां भी वरदराज का पढ़ाई में हाल ऐसा ही था।
शिक्षकों और सहपाठियों के तानों से परेशान एक दिन वरदराज कड़ी धूप में कहीं जा रहा था। रास्ते में उसे बहुत प्यास लगी। वरदराज ने अपने आस-पास देखा तो दूर उसे एक कुँआ नजर आया। वरदराज उस कुएँ के पास पहुँचा। वहां वरदराज ने देखा कि कुएं की जगत पर रस्सी की रगड़ ने पत्थर पर भी निशान बना दिए हैं। इस घटना ने बालक वरदराज के मन-मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव डाला। उसे समझ आ गया कि रस्सी की लगातार रगड़ से जब पत्थर में भी लकीरें पड़ सकती हैं तो बार-बार अभ्यास करने से उसे भी पढ़ना क्यों नहीं आएगा।
उस दिन के बाद वरदराज का जीवन एकदम बदल गया। वह पढ़ाई में ध्यान देने लगा, गुरुजी जो सिखाते वरदराज उसे ध्यान से सुनता, अपना पाठ याद कर गुरुजी को सबसे पहले सुनता और अपनी कक्षा में सबसे ज्यादा पढ़ाई करता था। बहुत जल्द वरदराज एक मूर्ख से बुद्धीमान बालक बन गया। आगे चलकर वह बालक संस्कृत के बहुत बड़े विद्वान् बनें और उन्होनें संस्कृत के तीन ग्रंथों की रचना की।
मध्यसिद्धान्तकौमुदी
लघुसिद्धान्तकौमुदी
सारकौमुदी

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